हकलाहट कोई बीमारी नहीं होती बल्कि एक तरह की आदत होती है जिसे कई रिसर्च द्वारा खोजी गयी तकनीक के माध्यम से सही किया जा सकता है वो भी बहुत ही काम समय में । हमने कई सालो की खोज और लोगो पर अनुसन्धान करने के बाद अपने प्रशिक्षण अधिवेशन में कई मानसिक व शारीरिक तकनीकआयात की है जो बहुत हद तक लोगो की हकलाने की समस्या को दूर कर सकती है |
नीचे कुछ तकनीकों की सूची है जिसे अभ्यास करके हम अपनी हकलाहट को सही कर सकते है |
शारीरिक तकनीक
१) कोस्टल ब्रीथिंग तकनीक – ये बहुत शक्तिशाली स्वांस लेने की प्रक्रिया है जिसमे हमें अपने मुँह से फेफड़ो को वायु द्वारा भरना पड़ता है और फिर धीरे धीरे वायु को अपने फेफड़ो पे ही ध्यान करके बाहर निकलना पड़ता है | इसे हम ध्यान केंद्रित ब्रीथिंग भी बोल सकते है | हमारे प्रशिक्षण केंद्र में विशेषज्ञों की निगरानी में हर विद्यार्थी को सतर्कता के साथ अभ्यास करवाया जाता है | इस अभ्यास का लक्ष्य अपनी ब्रीथिंग को नियंत्रण करना होता है ताकि हम अपने बोलचाल में एक नियंत्रण ला सके |
२) एयर फ्लो तकनीक – ये दूसरी सबसे महत्वपूर्ण ब्रीथिंग तकनीक होती है जिसमे हम अपनी छाती पे ध्यांन केंद्रित करते हुए स्वांस के साथ शब्दों को बहार निकलते है | इस तकनीक के माध्यम से हम अपने सांस, शब्द व् विचारो के बीच में समन्वय लाते है | तकनीक काफी संवेदनशील और व्यापक होती है अथवा विशेषज्ञ की निगरानी में करना अनिवार्य है |
३) प्रोलोंगेशन तकनीक – कभी कभी कुछ मामलो में जिसमे कुछ लोगो को बहुत ज्यादा हकलाहट होती है और एयरफ्लो तकनीक के माध्यम से भी कुछ शब्द जब बाहर नहीं आते तब हम प्रोलोंगेशन तकनीक की मदद से शब्द के पहले अक्षर को खींचकर सांस के साथ बहार निकालते हैं जिससे शब्द बहुत आसानी से बहार निकल जाता है | तकनीक बहुत कारगर होती है अगर हम इसका निरंतर अभ्यास करें |
४) माइंड ट्यूनिंग तकनीक – ये तकनीक उन लोगो के लिए है जो बहुत ज्यादा हकलाते हैं और हकलाने की समस्या इतनी ज़ादा होती हैं की मुँह से एक अक्षर भी नहीं निकलता चाहे फिर वो अकेले हो या किसी के सामने | इस तकनीक के माध्यम से शब्द के पहले अक्षर को गीत के रूप में गया जाता हैं और फिर बाकि अक्षरों को धीरे धीरे निकला जाता है | इस तकनीक को भी विशेषज्ञ की निगरानी में सफलतापूर्वक सिखाया जाता है |
५) पब्लिक स्पीकिंग – पब्लिक स्पीकिंग हमारे केंद्र का बहुत महत्वपूर्ण अंग होता है जिसमे हर विद्यार्थी को पहले केंद्र में अभ्यास करवाया जाता है उसके बाद अलग अलग लोगो व् परिस्थितियों से गुजारा जाता है | पब्लिक स्पीकिंग के दौरान विद्यार्थियों को हर तरह की चुनौती लेनी पड़ती है जिसमे उन्हें एकल स्पीकिंग से लेकल सामूहिक भाषण करवाया जाता है | इस चुनौती के बाद विद्यार्थियों के अंदर का शर्म व् डर दूर होता है और एक आत्मविश्वास की अनुभूति उत्पन्न होती है की अब हम किसी के सामने भी बात कर सकते हैं |
मानसिक तकनीक –
मानसिक तकनीक का अभ्यास भी उतना ही जरूरी है जितना शारीरिक तकनीक का है | चूंकि हकलाहट हमारे मन में होती है नाकि हमारे मुँह में इस कारन हमें इसका निरंतर अभ्यास करना पड़ता है
हमारे केंद्र में तीन महत्वपूर्ण मानसिक तकनीक पे ध्यान दिया जाता है |
१) सेल्फ टॉक – सेल्फ टॉक का मतलब होता है अपने आप से बाते करना अथवा अपने अंदर सकारात्मक विचारो का संचालन करना | चूंकि हकलाहट हमारे अवचेतन मन में होती है तो इस तकनीक के माध्यम से हम अपने मन में हकलाहट को लेके सकारात्मक सन्देश डालते है और अपने मन को आश्वस्त करते है की हम अपनी हकलाहट को ठीक कर सकते है | और धीरे धीरे आपको इसका परिणाम भी मिलने लगता है |
२) क्रिएटिव विज़ुअलाइज़ेशन – इस तकनीक की मदद से हम कुछ ऐसी परिस्थितियों की कल्पना करते है जिसमे हमे बोलने में बहुत डर लगता था | और मन में कल्पना करते है की हम अब बहुत अच्छे से बात कर रहे है | हम बिलकुल भी नहीं हकला रहे हैं | लोग बहुत ध्यान से हमें सुन रहे हैं | धीरे धीर हम देखते हैं की हमारे मन में अब वो आत्मविश्वास आ चूका हैं की हम अब किसी का भी सामना कर सके हैं वो भी बिना डरे | यही आत्मविश्वास फिर हमारे बोल चाल में भी दिखने लगता हैं और हम आसानी से अपनी बात लोगो के सामने रख पाते हैं |
४) ध्यान – मानसिक रूप से फिट रहने के लिए ध्यान की साधना बहुत महत्वपूर्ण होती हैं | ध्यान करने से आपका मन शांत होता हैं | मन में एक धीमापन आता है व् मन में सकारात्मक तरंगे बहने लगती है | और इस शांत मन से आप धैर्यपूर्वक तकनीक के साथ लोगो से बात कर पाते हैं |
हमें इस बात का बहुत ध्यान रखना पड़ता है की ये सारी तकनीक का अभ्यास हम निरंतरता पूर्वक करते रहें क्यूंकि लगातार अभ्यास करने से ही आप अपनी हकलाने की समस्या से निजात पा सकते है |